Navarna Mantra Sadhana Mantra नवार्ण मंत्र का अर्थ
- नवार्ण मंत्र साधना
- नवार्ण मंत्र जाप के लाभ
- इस मंत्र को नवार्ण मन्त्र क्यों कहते है ?
- नवार्ण मंत्र की साधना विधि क्या है ?
- कितने मंत्र का अनुष्ठान करना चाहिए ?
- नवार्ण मंत्र की साधना कैसे करें ?
माता दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है ! नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों वाले इस बीज महामंत्र में देवी दुर्गा माँ की नौ शक्तियां समायी हुई है !
हर एक देवी देवता का मूल मंत्र है वैसे ही माँ दुर्गा का सबसे शक्तिशाली और माँ की शीघ्र पूर्ण कृपा देने वाला जो मंत्र है वो है “नवार्ण मंत्र” “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” |
नवार्ण मंत्र से आपको सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती माँ दुर्गा जी का पूर्ण आशीर्वाद के साथ उनके तीनों स्वरूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली को प्रसन्न किया जा सकता हैं
इस मंत्र साधना में जो विधि विधान है वो विधि विधान सहित ही इस मंत्र का जाप करना चाहिये अन्यथा उसका फल नहीं मिलता या विलम्ब से मिलता है |
यह मंत्र परम गोपनीय औरअत्यंत लाभकारी है | शक्ति साधना के महत्त्वपूर्ण मंत्रों और स्तोत्रों में इस नवार्ण-मंत्र का प्रमुख स्थान माना जाता हैं !
नवार्ण मंत्र साधना के माध्यम से साधक अपनी कुण्डलिनी चेतना को जाग्रत् कर सकता है !
- इस मंत्र साधना से माँ दुर्गा की पूर्णकृपा प्राप्त होती है और यह एक मात्र ऐसा मंत्र है जिन्हके मन्त्र जाप से माँ दुर्गा के जितने भी स्वरुप है उन सभी स्वरुप का आशीर्वाद प्राप्त होता है |
- नवार्ण मंत्र साधना को पूर्णता रूप से सिद्ध करके मोक्ष प्राप्त की जा सकती है ! किसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए Navarna Mantra Sadhana में नवार्ण मंत्र को पूर्ण लगन से सवा लाख मंत्र का जाप करके, अनुष्ठान के रूप में किया जाये, तो तत्काल सफलता प्राप्त होती है !
- सभी बाधा और कष्टों से मुक्ति देता है यह मंत्र | धर्म-अर्थ-कर्म-मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थो को देने वाला उत्तम मन्त्र है यह नवार्णमन्त्र | किसी भी प्रकार के ऋणों में से मुक्ति देता है यह मंत्र और सभी विलम्बित कार्यो में सफलता प्रधान करता है |
- नकारात्मक शक्तियों को मूल से नष्ट कर देता है |
- नवार्ण मंत्र से नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की भी शक्ति है !
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
सभी मंत्रो के आगे ॐ एक दोष मुक्ति के लिये लगाया जाता है |
किन्तु नवार्ण यानी “नव” “अर्ण” यानी अक्षर या शब्द अर्थात नवशब्दो से बाना है वो नवार्णमन्त्र | इस मंत्र के हर एक शब्द को गिने तो नव होते है | इसलिए इसे नवार्णमन्त्र कहते है |
ऐं : सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं : महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं : महाकाली का बीज मन्त्र है ।
नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज मंत्र “ऐं” से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “सूर्य ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज मंत्र “ह्रीं” से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “चन्द्र ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज मंत्र “क्लीं” से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “मंगल ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज मंत्र “चा” से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “बुध ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्रके पंचम बीज मंत्र “मुं” से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “बृहस्पति ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज मंत्र “डा” से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “शुक्र ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज मंत्र “यै” से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “शनि ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज मंत्र “वि” से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “राहु ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
नवार्ण मंत्र के नवम बीज मंत्र “चै” से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, इस बीज मंत्र से “केतु ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है !
इस मंत्र की साधना में क्रमशः विनियोग-न्यास-ध्यान और उसके बाद मूल मंत्र का आरम्भ करना है |
इस मंत्र का मूल अनुष्ठान 5 लाख मंत्रो का है | अगर आप चाहो तो इसका प्रथम अनुष्ठान 12 हजार मंत्रो का कर सकते है | यानी 120 माला का या फिर प्रतिदिन 9 माला भी कर सभी कार्य सफल बना सकते है |
नवार्ण मंत्र की साधना निचे लिखे हुए तरीके से करें :-
विनियोगः
अपने दाहे हाथ में जल पकड़कर इस विनियोग को पढ़ने के बाद उस जल को किसी पात्र में छोड़े या सिर्फ विनियोग भी पढ़ सकते हो |
ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्राऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दांसि, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |
न्यास ( इन न्यास मंत्रो को पढ़कर न्यास करे )
ऋष्यादिन्यास ब्रह्मा विष्णु रूद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि | बोलकर अपने सिर को दाए हाथ से स्पर्श करे | गायत्र्युष्णिगनुष्टुप छन्देभ्यो नमः मुखे | बोलकर मुख को स्पर्श करे | श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि | बोलकर ह्रदय को स्पर्श करे | ऐं बीजाय नमः गुह्ये | बोलकर अपने गुप्त भाग को स्पर्श कर अपना हाथ पानी से धोये | ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | बोलकर अपने दोनों पैरो को स्पर्श करे | क्लीं कीलकाय नमः नाभौ | बोलकर अपनी नाभि को स्पर्श करे |
करन्यास ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः | ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः | ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः | ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
हृदयादिन्यास ॐ ऐं हृदयाय नमः | ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा | ॐ क्लीं शिखायै वौषट | ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् | ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट |
अक्षरन्यास ॐ ऐं नमः शिखायां | ॐ ह्रीं नमः दक्षिण नेत्रे | ॐ कलीम नमः वामनेत्रे | ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे | ॐ मुं नमः वामकर्णे | ॐ डां नमः दक्षिणनासा पुटे | ॐ विं नमः मुखे | ॐ चें नमः | गुह्ये |
दिंगन्यास ( सभी दिशा में नमस्कार करे ) ॐ ऐं प्राच्यै नमः | ॐ ऐं आग्नेयै नमः | ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः | ॐ ह्रीं नैऋत्यै नमः | ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः | ॐ क्लीं वायव्यै नमः | ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः | ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै उर्ध्वायै नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै भूम्यै नमः |
श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती का ध्यान धरे |
श्री महाकाली ध्यान ॐ खड्गं चक्रगदेषु चाप परिघान शूलं भुशुण्डीं शिरः शङखं संदधतीं करैस्त्रीनयनां सर्वाङ्गभुषावृतां | नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्त्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभं ||
श्री महालक्ष्मी ध्यान ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेशुकुलीशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुरभाजनं | शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां सेवे सैरिभमर्दिनिमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां ||
श्री महासरस्वती ध्यान ॐ घण्टाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्ददधतीं घनान्तविलसछीतांशुतुल्यप्रभां | गौरिदेहसमुदभ्वां त्रिजगतांमाधारभूतां महा- पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनिम ||
माँ दुर्गा का ध्यान ॐ विद्युदामसमप्रभां मृगपतिस्कंधस्थितां भीषणां कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेवितां | हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणांमनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ||
यह सभी ध्यान करने के बाद माँ दुर्गा के मूल मंत्र नवार्णमंत्र का जाप करे |
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे बहुत ही सुन्दर तरीके से और स्पष्ट उच्चारण करे | माँ दुर्गा की पूर्ण कृपा प्राप्त होगी |
|| इति नवार्ण मंत्र: ||