सूर्य नमस्कार मंत्र अर्थ सहित - Surya Namaskar
सूर्य नमस्कार के मंत्रो द्वारा आप अपने सूर्य नमस्कार करने की प्रक्रिया में कृतज्ञता का भाव जोड़ सकते हैं।
इन मंत्रों द्वारा आप सिर्फ सूर्य का ही नही परंतु पूरी सृष्टि का भी सम्मान करते हैं।
ये मंत्र सूर्य नमस्कार करने की प्रक्रिया को और अधिक आध्यात्मिक बना देते हैं।
सूर्य नमस्कार के मंत्रो का उच्चारण करने का सिर्फ एक ही नियम है और वो है कृतज्ञ भाव के साथ मंत्रो का उच्चारण करना।
हरेक मंत्र का एक विशेष अर्थ होता है परंतु उस मंत्र के अर्थ की गहराई में उतारना अति आव्यशक नही है।
जैसे की, “ॐ भानवे नमः” का अर्थ है “जो हमारे जीवन में प्रकाश लाता है”।
जब आप इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो आप सूर्य के प्रति रौशनी व धरती पर जीवन के लिए कृतग्यता प्रकट करते हैं।
सूर्य नमस्कार की प्रक्रिया के दौरान इन मंत्रों की सूर्य की स्तुति में वंदना की जाती है।
यह मंत्र सूर्य नमस्कार के लाभों को और अधिक बढ़ा देते हैं।
इनका शरीर और मन पर एक सूक्ष्म परंतु मर्मज्ञ प्रभाव पड़ता है।
यह 13 मंत्र जो सूर्य की प्रशंसा में गाये जाते हैं इनका सूर्य नमस्कार करने कि प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है।
यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है।
इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है।
यह स्त्री, पुरुष, बाल, युवा और वृद्धों के लिए उपयोगी होता है।
सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्येक बार सूर्य मंत्रो के उच्चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्न है-
1. ॐ मित्राय नमः,
2. ॐ रवये नमः,
3. ॐ सूर्याय नमः,
4. ॐ भानवे नमः,
5. ॐ खगाय नमः,
6. ॐ पूष्णे नमः,
7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः,
8. ॐ मरीचये नमः,
9. ॐ आदित्याय नमः,
10. ॐ सवित्रे नमः,
11. ॐ अर्काय नमः,
12. ॐ भास्कराय नमः,
13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः
नमस्कारासन ( प्रणामासन) स्थिति में समस्त जीवन के स्त्रोत को नमन किया जाता है।
सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड का मित्र है, क्योंकि इससे पृथ्वी समत सभी ग्रहों के अस्तित्त्व के लिए आवश्यक असीम प्रकाश, ताप तथा ऊर्जा प्राप्त होती है।
पौराणिक ग्रन्थों में मित्र कर्मों के प्रेरक, धरा-आकाश के पोषक तथा निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।
प्रातःकालीन सूर्य भी दिवस के कार्यकलापों को प्रारम्भ करने का आह्वान करता है तथा सभी जीव-जन्तुओं को अपना प्रकाश प्रदान करता है।
“रवये“ का तात्पर्य है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवधारियों को दिव्य आशीष प्रदान करता है।
तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इन्हीें दिव्य आशीषों को ग्रहण करने के उद्देश्य से शरीर को प्रकाश के स्त्रोत की ओर ताना जाता है।
यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अत्यन्त सक्रिय माना गया है।
प्राचीन वैदिक ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है।
ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाल सप्त किरणों के प्रतीक है।
जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है - भू (भौतिक), - भुवः (मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय), स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय), मः ( देव आवास), जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है), तपः (आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) और सप्तम् (परम सत्य)।
सूर्य स्वयं सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है तथा चेतना के सभी सात स्वरों को नियंत्रित करता है।
देवताओं में सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है।
वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उसका प्रतिनिधित्त्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर है।
सूर्य भौतिक स्तर पर गुरू का प्रतीक है।
इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है - उसी प्रकार जैसे प्रातः वेला में रात्रि का अंधकार दूर हो जाता है।
अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से सूर्य यंत्रों (डायलों ) के प्रयोग से लेकर वर्तमान कालीन जटिल यंत्रों के प्रयोग तक के लंबे काल में समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आकाश में सूर्य की गति को ही आधार माना गया है।
हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उससे जीवन को उन्नत बनाने की प्रार्थना करते हैं।
सूर्य सभी शक्तियों का स्त्रोत है।
एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है।
साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमे शरीर के सभी आठ केन्द्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए उस पालनहार को अष्टांग प्रणाम करते हैं।
तत्त्वतः हम उसे अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समर्पित करते है तथा आशा करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।
हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अण्डे के समान सूर्य की तरह देदीप्यमान, ऐसी संरचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है।
हिरण्यगर्भ प्रत्येक कार्य का परम कारण है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, प्रकटीकरण के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर निहित रहता है।
इसी प्रकार समस्त जीवन सूर्य (जो महत् विश्व सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है ) में अन्तर्निहित है।
भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हममें रचनात्मकता का उदय हो।
मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है। परन्तु इसका अर्थ मृग मरीचिका भी होता है।
हम जीवन भर सत्य की खोज में उसी प्रकार भटकते रहते हैं |
जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित ) मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता है।
पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवके को प्राप्त करने के लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत् अथवा असत् के अन्तर को समझ सकें।
विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनन्त नामों में एक नाम अदिति भी है।
वहीं समस्त देवों की जननी, अनन्त तथा सीमारहित है।
वह आदि रचनात्मक शक्ति है जिससे सभी शक्तियाँ निःसृत हुई हैं।
अश्व संचलानासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।
सवित्र उद्दीपक अथवा जागृत करने वाला देव है।
इसका संबंध सूर्य देव से स्थापित किया जाता है।
सवित्री उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को जागृत करता है और क्रियाशील बनाता है।
“सूर्य“ पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्त्व करता है।
जिसके प्रकाश में सारे कार्यकलाप होते है।
सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति में सूर्य की जीवनदायनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र को प्रणाम किया जाता है।
अर्क का तात्पर्य है - उर्जा ।
सूर्य विश्व की शक्तियों का प्रमुख स्त्रोत है।
हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा उर्जा के इस स्त्रोत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।
सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति प्रणामासन (नमस्कारासन) में अनुभवातीत तथा आघ्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्वा समर्पित की जाती है।
सूर्य हमारे चरम लक्ष्य-जीवनमुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करता है।
प्रणामासन में हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखायें।
इस प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का समावेश किया जा रहा है।
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