Putrakameshthi Yagya कैसे संभव हुआ राजा दशरथ का पुत्रकामेष्ठि यज्ञ?
Putrakameshthi Yagna by Raja Dashrath
राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करने का निर्णय लिया। किन्तु, इस यज्ञ को विधिपूर्वक संपन्न करने की सामर्थ्य रखने वाला कोई भी ऋषि यह यज्ञ करने को तैयार नहीं था। इसका कारण यह था कि पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करने वाले ऋषि की जीवन भर की तपस्या की आहुति भी इस यज्ञ में होने वाली थी। तब राजा दशरथ ने अपने दामाद श्रृंग ऋषि को ही इस यज्ञ को करने के लिए आमंत्रित किया।
अन्य ऋषियों की भांति श्रृंग ऋषि ने भी ऐसा करने से मना कर दिया, किन्तु बाद में अपनी पत्नी शांता के कहने पर वे यह पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करने को सहमत हो गए। लेकिन श्रृंग ऋषि ने राजा दशरथ से कहा कि इस यज्ञ में मेरी पत्नी शांता का मेरे साथ होना आवश्यक है। राजा दशरथ को भय था कि उनकी पुत्री शांता के अयोध्या में आने से फिर से कहीं अकाल न पड़ जाए। दरअसल शांता के जन्म के समय अयोध्या में भयंकर सूखा पड़ा था, तब शांता को ही इसका कारण माना गया था। राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी को दान कर दिया था। उसके बाद शांता कभी अयोध्या नहीं आई थी।
लेकिन अब दशरथ को श्रृंग ऋषि की बात माननी पड़ी। शांता के पहुँचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। यह सब देखकर दशरथ और कौशल्या आश्चर्यचकित थे, तब शांता ने बताया कि वह उनकी पुत्री शांता है। वर्षों बाद दोनों ने अपनी पुत्री को देखा तो उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। राजा दशरथ ने श्रृंग ऋषि और शांता को सम्मानपूर्वक आसन ग्रहण करवाया और उनकी आरती उतारी। तब श्रृंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया, जिसके फलस्वरूप भगवान् राम तथा उनके अन्य भाइयों का जन्म हुआ।